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Tuesday, 12 August 2014

'वतन हमेशा रहे शादकाम और आजाद, हमारा क्या है हम रहें, रहें, न रहें'

'वतन हमेशा रहे शादकाम और आजाद, हमारा क्या है हम रहें, रहें, न रहें'


काकोरी के दूसरे बड़े क्रांतिकारी थे अशफाकउल्ला खा। उन्होंने काकोरी साजिश में सजा पाई। अपनी गिरफ़्तारी से पहले फरारी हालत में उनसे लाला केदारनाथ सहगल ने कहा था कि तुम चाहो तो वे बड़ी आसानी से हिंदुस्तान की सरहद से बाहर भेजने का इंतजाम कर सकते है। अशफ़ाक़ ने इस पर हँसते हुए उत्तर दिया था  ,' मैं फांसी से नहीं डरता। भई, किसी मुसलमान को भी फांसी चढ़ने दो। हिन्दुओ में तो खुद्दिराम बोस और कन्हाईलाल सरीखे देशभक्त शहीद हुए है,लेकिन मुसलमानो में तो मै पहला ऐसा भाग्यशाली हु जो तख़्त -ए -फांसी पर झूलेगा।'अशफ़ाक़ १९ दिसंबर १९२७ को फ़ैजाबाद जेल में शहीद हो गए।
वतन के नाम भेजे आखिरी संदेश में अशफ़ाक़ ने कहा था, 'मैं हिंदुस्तान कि ऐसी आजादी का ख्वाहिशमंद था जिसमें गरीब खुश और आराम से रहते। खुदा मेरे बाद वह दिन जल्द आए जबकि छतर मंजिल लखनऊ में अब्दुल्ला मिस्त्री लोको वर्कशॉप और धनिया, किसान भी मिस्टर खलीकुज्जमा और जगतनारायण मुल्ला व राजा साहेब महमूदाबाद के सामने कुर्सी पर बैठ सके। भारतीय भाइयों, आप कोई हो, चाहे जिस धर्म या संप्रदाय के अनुयायी हो, परन्तु आप देशहित में एक होकर योग दीजिये। आप लोग व्यर्थ में लड़-झगड़ रहे है है। सब धर्म एक है, रास्ते चाहे भिन्न-भिन्न हो, परन्तु सबका लक्ष्य एक है।फिर यह झगड़ा-बखेड़ा क्यों? हम मरने वाले काकोरी के अभियुक्तों के लिए आपलोग एक   हो जाइये और सब मिलकर नौकरशाही का मुकाबला कीजिये। सबको आखिरी सलाम। 

Monday, 11 August 2014

धन्य थी वो माँ धन्य था वो बेटा

धन्य थी वो माँ धन्य था वो बेटा 




काकोरी कांड में फांसी पाने वाले क्रांतिकारी रामप्रसाद बिस्मिल गोरखपुर  जेल में बंद थे। फांसी से एक दिन पहले १८ दिसंबर १९२७ को उनकी माँ गोरखपुर जेल में उनसे मिलने पहुंची। माँ को देखकर बिस्मिल की आँखों में आंसू आ गए। यह देख कर माँ ने फ़ौरन डांटते हुए कहा 'मैं तो समझती थी कि मेरे बेटे से ब्रिटिश सरकार डरती है। तुम्हे रोकर ही मरना था तो क्रांति का रास्ता क्यों चुना। 'बिस्मिल ने आंसू पोछते हुए कहा ,' ये आंसू मौत के डर से नही, तुम्हारी ममता के है। तुम्हारी जैसी माँ अब कहां मिलेगी। विश्वास रखो माँ,कल तुम्हारा बेटा वीरोचित मौत मरेगा। '
उस समय जेल अधिकारी भी माँ का साहस देखकर दंग़ रह गए। अगले दिन जब सबेरे फांसी पर जाते समय बिस्मिल ने 'वन्देमातरम ' का उद्घोष किया और 'ब्रिटिश साम्राज्यवाद का नाश हो' कहते हुए निर्भीकता से फांसी के फंदे पर झूल गए। उसी दिन बिस्मिल के दो और साथियों को भी फांसी दी गई। शहादत तीन दिन पहले जेल के भीतर लिखी अपनी आत्मकथा में बिस्मिल ने अपनी माँ को बहुत सम्मान के साथ याद किया है। उनके क्रन्तिकारी व्यक्तित्व  निर्माण में माँ का बहुत बड़ा योगदान था।