'वतन हमेशा रहे शादकाम और आजाद, हमारा क्या है हम रहें, रहें, न रहें'
काकोरी के दूसरे बड़े क्रांतिकारी थे अशफाकउल्ला खा। उन्होंने काकोरी साजिश में सजा पाई। अपनी गिरफ़्तारी से पहले फरारी हालत में उनसे लाला केदारनाथ सहगल ने कहा था कि तुम चाहो तो वे बड़ी आसानी से हिंदुस्तान की सरहद से बाहर भेजने का इंतजाम कर सकते है। अशफ़ाक़ ने इस पर हँसते हुए उत्तर दिया था ,' मैं फांसी से नहीं डरता। भई, किसी मुसलमान को भी फांसी चढ़ने दो। हिन्दुओ में तो खुद्दिराम बोस और कन्हाईलाल सरीखे देशभक्त शहीद हुए है,लेकिन मुसलमानो में तो मै पहला ऐसा भाग्यशाली हु जो तख़्त -ए -फांसी पर झूलेगा।'अशफ़ाक़ १९ दिसंबर १९२७ को फ़ैजाबाद जेल में शहीद हो गए।
वतन के नाम भेजे आखिरी संदेश में अशफ़ाक़ ने कहा था, 'मैं हिंदुस्तान कि ऐसी आजादी का ख्वाहिशमंद था जिसमें गरीब खुश और आराम से रहते। खुदा मेरे बाद वह दिन जल्द आए जबकि छतर मंजिल लखनऊ में अब्दुल्ला मिस्त्री लोको वर्कशॉप और धनिया, किसान भी मिस्टर खलीकुज्जमा और जगतनारायण मुल्ला व राजा साहेब महमूदाबाद के सामने कुर्सी पर बैठ सके। भारतीय भाइयों, आप कोई हो, चाहे जिस धर्म या संप्रदाय के अनुयायी हो, परन्तु आप देशहित में एक होकर योग दीजिये। आप लोग व्यर्थ में लड़-झगड़ रहे है है। सब धर्म एक है, रास्ते चाहे भिन्न-भिन्न हो, परन्तु सबका लक्ष्य एक है।फिर यह झगड़ा-बखेड़ा क्यों? हम मरने वाले काकोरी के अभियुक्तों के लिए आपलोग एक हो जाइये और सब मिलकर नौकरशाही का मुकाबला कीजिये। सबको आखिरी सलाम।
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