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Monday, 11 August 2014

शहादत को था बेताब वो आशिक़

शहादत को था बेताब वो आशिक़ 




















नाम था शिवराम हरि राजगुरु। महाराष्ट्र के रहने वाले थे राजगुरु। स्वतंत्रता संग्राम में चन्द्रशेखर आजाद और भगतसिंह  साथी। अंग्रेजो का "साइमन कमीशन " जब हिन्दुस्तान आया तब उसका विरोध करते हुए लाला लाजपत पर पुलिस की लाठिया पड़ी जिससे वे गंभीर रूप से घायल हो गए और कुछ दिनों बाद उनकी मृत्यु हो गई। क्रांतिकारियों ने इसे देश का अपमान समझा और लाहौर में दोषी पुलिस अधिकारी जे. पी. सांडर्स को गोली मारकर उसका बदला  ले लिया। आजाद की अगुआई में सम्पन्न हुए इस अभियान में भगत सिंह  राजगुरु शामिल थे। राजगुरु उस ब्रिटिश अफसर को मारने के लिए इतने उतावले थे कि उन्होंने ही सबसे पहले उस पर गोली चला दी, यह सोचकर कि कहीं भगत सिंह पहला वार न का कर दे। राजगुरु आग का गोला थे। शहादत से पूर्व सिर पर काला कपड़ा और गले में फांसी का फंदा डाले जाने के बाद अगर उनसे पूछा जाता कि उनकी आखिरी इच्छा क्या है, तो वे यही कहते कि जरा यह काला कपड़ा आँखों से हटा कर एक आँख से मुझे  लेने दो कि कहीं भगत सिंह उनसे पहले तो फांसी पर चढ़ने नही जा रहा है। शहादत  ऐसे बेताब आशिक़ राजगुरु अपने साथी  भगत सिंह और सुखदेव के साथ २३ मार्च १९३१ को लाहौर जेल में फांसी पर चढ़ा दिए गए।