कर्म
भाग्य नहीं नर का भुषण सौभाग्य, कर्म होता है
भाग्य-लीक पर चलने वाला, पर-वश हो जीता है
किस्मत पर रोनेवाला, तो कायर कहलाते हैं
भू से रवि को छूने वाले शायर कहलाते हैं।
भोगी,लोलुप,दर्पी जग में जीवन व्यथ गवाता
मर कर भी जीता वह, जो अपना इतिहास बनाता
आम रोपने वालें ही तो मीठा फल खाते है
और मनोरथ वालें केवल काँटे ही पाते है।
भाग्य-भरोसे कौरव से पांडव थे सब कुछ हारे
कर्म-हीन बनकर कानन मे फिरते रहे बिचारे
हुई चेतना कर्म-पथिक बन काँटो पे चल पाएं
खोया शासन पाया फिर से फिर अधिकार जमाए।
हिटलर हीन-वंश का बालक, कर्म -शक्ति को पाया
निज व्यक्तित्व, प्रबल-प्रतिभा से जग में नाम कमाया
पौरुष के बल चलने वाला कहीं नही रुकता है
जिसके श्रम से मरुस्थल में, भी गुलाब खिलता है।
अगर इरादा पक्का तेरा मुकर नही सकते तो
गगनांगन की बिजली जैसी, अगर चमक सकते तो
ब्रज-नाद-सा गर्जन तेरा विजय-गीत गाएगा
तेरे पौरुष का प्रभाव, दुनिया पे छा जायेगा।
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