Monday, 2 June 2025
मातृभाषा
हम 21 फरवरी को अंतरस्त्रीय मातृभाषा दिवस के रूप में मनाते है। मातृभाषा दिवस की घोषणा 17 नवम्बर 1999 को यूनेस्को ने की थी जिसके उपरांत 21 फरवरी 2000 को इसकी शुरुआत हुई थी। इस वर्ष हम मातृभाषा दिवस के 25वे वर्षगांठ के अवसर पर 21 फरवरी को रजत जयंती के रूप में मना रहे है।मातृभाषा अथवा माँ की भाषा वह भाषा होती है जिस भाषा में शिशु पहली बार कुछ बोलता है। प्रायः क्षेत्रीय भाषा ही हमारी मातृभाषा होती है जिसमे हम पहली बार कुछ बोलना सीखते है। मातृभाषा का मानव जीवन में बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। हमारी बोली, हमारी सामाजिक संरचना, लोक त्योहार, मुहावरे, लोकतीया, लोक गीत, कहानिया एवं कविताए सभी मातृभाषा से यू जुड़ी है की मातृभाषा के बिना इनकी कल्पना करना असंभव है। किसी इंसान से औपचारिक बातचीत तो किसी भी भाषा में की जा सकती है, किन्तु जब किसी से आत्मीय रिश्ता बनाना हो अथवा किसी से अपनापन जताना हो तब उसकी मातृभाषा में बात करना ही श्रेष्ठ है। मातृभाषा एक समाज/समुदाय को जोड़ने एवं जोड़े रखने में भी अहम भूमिका निभाती है। किसी आंदोलन को सफल बनाने के लिए एवं उसके प्रभाव को जन-जन तक पाहुचाने में भी मातृभाषा महथी भूमिका निभाती है। 1948 के देश के आजादी के बाद जब पूर्वी पाकिस्तान का गठन हुआ तब वहाँ की सरकार ने, यह जानते हुए भी कि बांग्ला पूर्वी एवं पश्चिमी पाकिस्तान में सबसे ज्यादा बोले जाने वाली भाषा है, उर्दू को ही एकमात्र राष्ट्रीय भाषा के रूप में दर्जा दिया। इस फैसले के विरोध में पूरे देश में विरोध प्रदर्शन हुए। प्रदर्शनकारियों की मांग बस इतनी थी कि उर्दू के साथ बांग्ला को भी राष्ट्रीय भाषा का दर्जा मिले। उनकी मांग को मानने की जगह सरकार ने प्रदर्शन को बड़े ही बर्बर तरीके से कुचल दिया। हजारो प्रदर्शनकारी घायल हुए एवं पूरे विश्व को सकते में डालते हुए इस दुर्लभ आंदोलन में पाँच बांग्लादेशी (अब्दुल सलाम, अबुल बरकत, रफीकुद्दीन अहमद, अब्दुल जब्बार एवं सफीउर रेहमान) आंदोलनकारियों नें अपनी मातृभाषा के लिए आंदोलन करते हुए 21 फरवरी 1952 को पुलिस की गोली खा कर जान दे दी। उनकी शहादत को याद करते हुए ही मातृभाषा दिवस की शुरुआत 21 फरवरी 2000 से की गयी थी। इस घटना ने पूरे विश्व को झकझोर दिया साथ ही मातृभाषा के महत्व को भी स्थापित किया। मातृभाषा आपको सिर्फ अपने समाज से ही नही जोड़ती बल्कि यह हमे विशिस्ट पहचान भी देती है। जैसे बिहार के अलग-2 हिस्से में रहने वाले लोग, कोई मगही है तो कोई मैथली, तो कोई भोजपुरिया है।रवीद्र नाथ टैगोर ने मातृभाषा महत्व को समझाते हुए मातृभाषा की तुलना माँ के दूध से की है।
हमारे संविधान निर्माताओ एवं विधायकी ने भी मातृभाषा के महत्व को समझते हुए संविधान के कई अनुछेदो, जिसमे अनुछेद 350ए प्रमुख है एवं राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में प्राथमिक शिक्षा मातृभाषा में देने पर जोर दिया है।भारत एक बहुभाषी राज्यों वाला देश है जहाँ अलग-2 राज्यो में अलग-2 भाषाए बोली जाती है।अतः देश के हर राज्य हर प्रांत एवं हर हिस्से को एक सूत्र में पिरोने के उद्देश्य से हिन्दी को राजभाषा का दर्जा दिया गया है। हिन्दी को यह ज़िम्मेदारी दी गयी है की वह देश के अलग-2 हिस्से में रहने वाले अलग-2 भाषा बोलने वाले नागरिकों के बीच भाषाई पुल का काम करें। चुकी देश की आधी से ज्यादा आबादी हिन्दी में बात नहीं करती एवं उनकी सांस्कृतिक धरोहरे जैसे उनके लोक त्योहार, मुहावरे, लोकतीया, लोकगीत, कहानिया सभी उनकी मातृभाषा में ही है। ऐसे में उन तक पहुचने के लिए, उनसे संप्रेषण करने के लिए एवं उनको उनकी सांस्कृतिक विरासत के साथ मुख्य धारा में जोड़ने के लिए मातृभाषा को सहेजना/समझना बेहद जरूरी है। मातृभाषा हमारी वह नीव है जिनको मजबूत किए बिना हिन्दी रूपी पुल को मजबूत करना संभव नहीं है।
अपने बैंकिंग क्षेत्र की बात करें तो यहाँ भी अगर आपको हिन्दी के साथ-2 क्षेत्रीय भाषा का ज्ञान हो तभी आप स्थानीय ग्राहको से आत्मीय स्तर पर जुड़ सकते है। उनकी जरूरतों को बेहतर ढंग से समझ कर अपने व्यवसाय की वृद्धि कर सकते है। मातृभाषा को अपनाकर न सिर्फ हम अपने समाज एवं संस्कृति से जुड़ सकते है बल्कि अपने व्यवसाय में भी नए आयाम स्थापित कर सकते है।
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